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Showing posts from February, 2022
   ज़िदगी का हर किसी को कुछ न कुछ शिला मीला  जिसकी जैसी चाह थी उसको वैसा ही खुदा मिला  कामिले मुतलक की बे रूखी मुकद्दर हो अगर  बिमार को कब दवा से दर्द ए दिल को शिफा मिला  साहिबे निसाब भी बेबसी का मज़ा चखते हैं कभी सजीनो मुबीन की जब इबारत से जा बजा मिला  हर मोढ़ पर मिलते रहे असिया ए नफ़्स ए शुकूं गैरत न मिल सका तो बशर बता दे क्या मिला  थी ठोकरों में खोपड़ी शाहों की अजनबी  तख्तों ताज की रौनक जब कज़ा से जा मिला 
हर कोई यहां कोई सहारा ढूढ़ता है  अना की बुलंदी में एक बेचारा ढूढता है  इक हकीकत की जिसकी शाहिद तेरा वजूद है  आंखें बंद कर उसी हकीकत को दुबारा ढूढता है