ज़िदगी का हर किसी को कुछ न कुछ शिला मीला
जिसकी जैसी चाह थी उसको वैसा ही खुदा मिला
कामिले मुतलक की बे रूखी मुकद्दर हो अगर
बिमार को कब दवा से दर्द ए दिल को शिफा मिला
साहिबे निसाब भी बेबसी का मज़ा चखते हैं कभी
सजीनो मुबीन की जब इबारत से जा बजा मिला
हर मोढ़ पर मिलते रहे असिया ए नफ़्स ए शुकूं
गैरत न मिल सका तो बशर बता दे क्या मिला
थी ठोकरों में खोपड़ी शाहों की अजनबी
तख्तों ताज की रौनक जब कज़ा से जा मिला
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